नई सोच
पात्र-परिचय
- रमेश
- मुंगेरीलाल
- कमलेश
- सुरेश
- कमला
- भवानी सिंह
- नील
- नितिन
- मुकेश
- अवी
- रिया
- टीना
- अमित
- सुनीता
- योगिता
पहला दृश्य
(गॉंव में एक पेड़ के नीचे मुंगेरीलाल और भवानी सिंह बैठे-बैठे रेडियो सुन रहे है और कमलेश पास में खेल रहा है| तभी रेडियों पर गाना बजता है| “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढेगा इंडिया”)

मुंगेरीलाल: अरे भाई! मैं भी म्हारा छोरा ने पढ़ाणो चाहूँ पर आपणे गाँव में तो स्कूल ही कोणी |
भवानी सिंह: दिन भर कंचा और गुल्ली डंडा खेले ये छोरा |

कमलेश: (आसमान से हवाई जहाज गुजरता है तीनों हवाई जहाज को देखते है|) म्हने भी एक बार हवाई जहाज में बैठनो है काश!…… (कमलेश के दिल में गाना बजता है “बटुआ टटोलें बिना ख्वाब चुनता है, दिल हाय अपनी कहाँ सुनता है|”)

कमला: ( भागती हुई आती है और हाँफते हुए कहती है|) अरे! ओ भवानी सिंह थारे बापू की तबियत घनी ख़राब है|
भवानी सिंह: अस्पताल तो घनो दूर है चल चल जल्दी चल ….|
(अस्पताल ले जाते वक्त बापू की मृत्यु हो जाती है| )
मुंगेरीलाल: आपणे गाँव में ना तो अस्पताल है ना हीं स्कूल |
भवानी सिंह: आपना छोरा छोरी भी बेरोजगार हैं |
कमला: कमाई रो भी कई साधन कोणी |
कमलेश: मैं बड़ा होकर गाँव को विकसित करूँगा |
[गाँव धीरे- धीरे शहर में बदल रहा है| लोग नाचते-गाते हैं| ( दुख भरे दिन बीते रे ……. ) ]
दूसरा दृश्य
(कमलेश विदेश जाकर पैसे कमाकर लाता है और अब अपने गॉंव में फैक्ट्री लगाता है पर…)
कमलेश: रमेश,…
रमेश: हाँ सर !
कमलेश: humm, हमारी नयी फैक्ट्री के लिए ये जमीन अच्छी रहेगी| पास में तालाब भी है, तो पानी की समस्या भी नहीं होगी|
रमेश: जी, बिलकुल सही सर |
कमलेश: ठीक है, तो खेत के मालिक से ये खेत खरीद लों |
रमेश: जी सर |
रमेश: सुरेश, जरा ये खेत वाले का पता करना… |
सुरेश: ठीक है आज ही करता हूँ |
सुरेश: काका, ये खेत आपका है ?
मुंगेरीलाल: हाँ है तो?
सुरेश: तो… आप ये खेत बेचेंगे क्या?
मुंगेरीलाल: क्यों भाया? अब तू पढ़ लिख कर खेती करेगो कई ?
सुरेश: नहीं काका… हमारे साहब यहाँ पर फैक्ट्री बनाना चाहते है |
मुंगेरीलाल: कौन साहब? वो भवानी सिंह को बेटो?
सुरेश: जी काका |
मुंगेरीलाल: पाँच लाख लूँगा जमीन का |
सुरेश: ठीक है आपको मुहँ माँगी कीमत मिल जाएगी |
( फैक्ट्री बन गई और कुछ सालों बाद……. )

रमेश: सर ये फैक्ट्री के कचरे का और वेस्ट मटेरियल का क्या करना है?
कमलेश: कचरा… पास के जंगल में फिकवा दो या नदी में बहा दो |
रमेश: सर दो सालों से बारिश नहीं हो रही है, तालाब में भी पानी नहीं है|
कमलेश: hummm
सुरेश: सर…कहीं हमारी फैक्ट्री बंद नहीं हो जाए |
कमलेश: नहीं, नहीं बंद नहीं होनी चाहिए वर्ना बहुत नुकसान हो जाएगा| मैं इसे किसी भी कीमत पर बंद नहीं होने दूँगा | सुन!
रमेश: जी सर !
कमलेश: वो… अंडरग्राउंड वाटर कब काम आएगा? बोरवेल बनवा दो २-४ |
(मौन दृश्य)
[गॉव में फैक्टियाँ तो धडल्ले से चलती है परंतु, पानी की कमी, प्रदूषण, जंगलों की कटाई, बारिश न होना, ईंधन की कमी आदि से जीना बेहाल हो जाता है|]


तीसरा दृश्य
( विडिओ कॉल )
नील: hey friends ! आज हमारा 12thका रिजल्ट आया है… तो मेरे डेड पार्टी दे रहे है |
so you all come with your family.
[सभी फैक्ट्री मालिक उनकी पत्नियाँ और उनके बच्चें पार्टी में शामिल होते है]
friends: hello everyone Let’s party! (अभी तो पार्टी शुरू हुई है…… गाना)

योगिता: ( शरबत का गिलास पकड़ते हुए) ये लो बेटा |
[सभी खाने-पीने का मजा लेते हुए बातें करते हैं बच्चें अपने-अपने फ्यूचर प्लान की बातें करते है और माँ-बाप आपस में बातें करते-करते बच्चों की बातें भी सुनते है|]
मुकेश: hey! क्या सोच रहा है यार!
नील: hummm… सोच रहा हूँ … रिजल्ट तो आ गए लेकिन अब बनेंगे क्या ?
नितिन: मैंने तो सोच लिया है, मैं तो साइकिल ठीक करने की दूकान खोलूँगा |

सभी मित्र: what?
रिया : but why?
नितिन: जिस तरह से ये सब लोग फ्यूल वेस्ट कर रहे हैं, हमारे लिए तो कुछ बचेगा ही नहीं|
तब सभी लोग साइकिल ही चलाएंगे ना|
अवी: और… मैं कचरा उठाने वाला बनूँगा (सभी हँसते है)

नील: पर तुम्हारे पापा के पास तो इतने पैसे है कि वो तो तुम्हारे लिए फैक्ट्री लगवा सकते है |
अवी: हाँ है तो पर…
मुकेश: पर क्या?
अवी: पर फैक्ट्री लगाने के लिए जगह कहा है? चारो तरफ तो कचरा ही कचरा फैला है |
नील: correct !
अवी: तो फिर मैं कचरा साफ़ करके बाकी बचे लोगों के लिए साफ़ और स्वच्छ जगह बनाऊंगा |
नील: wow! great.
मुकेश: मैं एक पिल बनाऊंगा जिससे लोगो की भूख मिटे|

टीना: तो तू खाना नहीं खाएगा?
मुकेश: खाना तो चाहता हूँ पर ……. अनाज उगाने के लिए जमीन बचेगी तब ना?
नील: फिर हम खायेंगे क्या?
मुकेश: अनाज मिल भी गया तो वो भी केमिकल वाला, तो फिर क्यों नहीं हम दवाई ही खाकर जिन्दा रहे |
नितिन: तू क्या बनेगी रिया?
रिया: hey guys… तुम सब लोगों को जिन्दा रखने की जिम्मेदारी मेरी |
सभी: वो कैसे ?
रिया: तुम लोगों ने सुना नहीं आजकल हवा कितनी जहरीली हो गई हैं |
Just because of law Oxygen level
नितिन: तो तू …Oxygen बनाएगी?
रिया: no! Guys… मैं Gardner बनूँगी, हर छोटी-छोटी जगह पर पेड़-पौधे लगाऊंगी,
ताकि तुम सब जिन्दा रह सको |

टीना: Hey dude what about you?
नील: मैं सोच रहा हूँ …… कि जोहड़ बनाऊ |
मुकेश: जोहड़? What is johad?
नील: जोहड़ पानी बचाने की एक ancient and natural technique हैं जिससे under ground water level बढाया जा सकता है और जिससे इसके पेड़ भी जिन्दा रह सकेंगे|

रिया: ohh yes!
नितिन: तभी तो तू हमे जिन्दा रख पायेगी (सभी हँसते है|)
चौथा दृश्य
कमलेश: अरे! हमारे बच्चे ये क्या बाते कर रहे हैं?
कहाँ हम अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजिनियर, बिजनेस मैन पायलट बनाना चाहते हैं और ये क्या सोच रहे हैं?
सुनीता: कबाड़ी वाले, जोहड़, साईंकिल पंक्चर की दूकान? पागल हो गए है ये लोग |
अमित: नहीं दोस्त पागल ये लोग नहीं हम लोग है |
सुनीता: वो कैसे ?
योगिता: हाँ हम लोगो को जो ये स्वच्छ हवा और साफ़ पानी हमारे पूर्वजो ने विरासत में दिये थे वो तो हम कब का खर्च कर चुके हैं और अब हम जो use कर रहे हैं वो इन बच्चों का है|
अमित: आज हम इसे save नहीं करेंगे तो हमारी आगे आने वाली पिढियां क्या use करेंगी ?
कमलेश: ये तो government का काम है, पर हम अकेले क्या कर सकते है?
अवी: जब जाधव मोलाई पयेंग (the forest men of India) अकेला पूरा जंगल लगा सकता है|
नील: राजेंद्र सिंह (the water men of India) इतने सारे जोहड़ बना सकता है|
टीना: और मात्र १६ साल की Greta Thunberg इस समस्या से लड़ सकती है तो हम क्यों नहीं ?
कमलेश: मैं अपनी फैक्ट्रियां बंद कर दूँ?
सुनीता: अरे नहीं नही नहीं ऐसा मत करना वरना कितने लोग बेरोजगार हो जाएंगे |
कमलेश: तो क्या करूँ?
अवी: हम वेस्ट मटेरियल को री यूज करेंगे , जैसे waist to wonder park in दिल्ली
योगिता: और प्लास्टिक का क्या?
रमेश: प्लास्टिक से हम ईंटे बनायेंगे जो बहुत मजबूत होती है |

सुरेश: आगे से हम कपड़े और साबूदाने से बने बैग, कुल्हड़ और पेड़ के पत्तो से बनी प्लेट इस्तमाल करेंगे जो १००% dissolvable है|

कमलेश: आज मुझे समझ में आया कि world sustainability के लिए economy, social and environment कितना जरूरी है|
अमित: आओ हम सभी वादा करते हैं कि आज से विकास के साथ-साथ पर्यावरण और समाज का भी पूरा ख्याल रखेंगे|
धन्यवाद!
– किरण यादव
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