बदलाव

आज फिर चले कुछ संभलकर,
ज़माने से जो चले आ रहे थे लड़खड़ाकर |
उसमे कुछ स्थिरता जरुर आई ,
पर वो कुछ रास नहीं आई |
दुनिया ने पल-पल परिवर्तन दिखाया ,
कभी पतझड़ तो कभी बसंत है आया|

आज फिर चले कुछ संभलकर
अक्सर ये सोचा करते थे कि ….
इस भागम-भाग से कुछ आराम पाए ,
लेकिन जब आराम आया तो जाना….
जो पाने को दौड़ रहे थे वो सब दिन ब दिन दूर हुआ जाए|
आज फिर चले कुछ संभलकर
जिन्हें अपना माना था वो तो हुए पराये सब ,
जहान से छूटे रिश्ते-नाते जाने कब?
किया था परिश्रम जिनके लिए तब ,
न अपने रहे न पराये अब |

आज फिर चले कुछ संभलकर
सब अपने पंख फैला कर उड़ दिए,
हम जहाँ थे वहाँ ही रह गए |
आज सही अर्थो में जाना परिवर्तन ही संसार का नियम है ,
इस नई सोच ने बदल दिया मेरा पूरा जीवन है |

नई-नई कोंपले फिर से फूटने लगी है,
अब जमाना हमें नहीं ,हम ज़माने को चलाएँगे ,
नए जज्बातों से जीवन को आगे बढ़ाएंगे |
अब आँसुओ की सिसकियाँ नहीं, हँसी के ठहाके लगाएँगे |
आज फिर चले कुछ संभलकर,
बदलाव जो रास आने लगा है,
नई उम्मीद और आमोद छाने लगा है|
आज फिर चले कुछ संभलकर,
ज़माने से जो चले आ रहे थे लड़खड़ाकर|
-किरण यादव
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