हिंदी कविता
( सभी शिक्षकों को समर्पित )
यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
सिर्फ़ प्यार है, काम से इन सभी को
कुर्सी किसको नहीं होती है प्यारी,
इसको पाने में कितनी जान है लगा डाली |
राजनेताओं ने कुर्सी का किया है मोल,
तो बड़े-बड़े सिहांसन जाते है डोल|
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
.
अपनी कुर्सी बचाने को खेले है खेल न्यारे,
इसके लिए छिना-झपटी और उठा-पटक करते है सारे|
पर एक पेशा ऐसा भी देखा,
जिसमे वो रखते है सबका लेखा-जोखा |
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
.
सुबह से शाम तक अपने पैरों पर रहे खड़े,
बिना कुर्सी दिन-भर अपने काम में रहे अड़े |
उसे लगाव जो होता कुर्सी का,
आगे न बढ़ने देता किसी को |
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
.
अपनी मेहनत से और लगन से किया जो काम,
पहुँचाया कितनों को अपने-अपने मुकाम |
किसी को इंजिनियर तो किसी को डॉक्टर है बनाया,
किसी को पायलट तो किसी को वैज्ञानिक के ताज से है सजाया|
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
.
एक-दो नहीं कई जीवन है, इनके ऊपर निर्भर,
जीते है जीवन बनकर बैखोफ और निडर|
कभी प्यार से तो कभी डाँट कर जीवन है सँवारा,
बिना किए अपनी परवाह दूजो को है उभारा |
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
भूल जाते है लोग, कुर्सी से प्यार करने वोलों को,
पर इन्हें ही जीवन भर याद करते है वो |
माता-पिता ने अपने बाद इन पर विश्वास है जताया,
भगवान से भी बढ़कर गुरु ने सम्मान है पाया |
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को,
.
भले ही आज के ज़माने में गुरु का मान हुआ हो कुछ कम,
पर एक शिष्य जब अपने गुरु को करता है याद, भूल जाते है वो सारे गम |
फ़क्र से सर ऊँचा हो जाता है,
कि मेरी सीख आज सफल हुई, मन में ये गुमान आ जाता है |
पर यहाँ कुर्सी से लगाव नहीं किसी को |
सिर्फ़ प्यार है, काम से इन सभी को
किरण यादव
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