( Different generation Different mind set )
आज मैंने छात्रों को एक पाठ पढ़ाया, पाठ का नाम था ‘पिता के नाम’ जिसे सुशांत सुप्रिय ने लिखा था|
पाठ में चार अलग-अलग पीढ़ियों का वर्णन है| जिसमे लेखक अपने पिताजी को एक पत्र लिख रहा है और बता रहा ही कि आपके द्वारा दिए संस्कार कितने अच्छे है जो आज भी पग-पग पर मेरे काम आते है, आपके लिखे सारे पत्र मेरे लिए धरोहर और विरासत है जो कि मुझे मुसीबत के वक्त सहारा देते है बल देते है|
लेखक पत्र में अपने पिताजी के साथ बिताये बचपन के पलों को याद करता हुआ लिखता है कि उसने बचपन में क्या-क्या किया जैसे- पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ना, गुल्ली-डंडा खेलना, पतंग उड़ना, पानी में छिछली फैंकना, कुत्ते-बिल्ली के साथ खेलना, पिताजी के साथ बागवानी करना इत्यादि|
जब मैंने पाठ को शुरू करने के लिए (प्रस्तावना के लिए) बच्चों से कुछ प्रश्न पूछे और पूछा कि उनके माता-पिता उन्हें अपने बचपन के बारे में क्या-क्या बातें बताते हैं?
तब कक्षा के हर एक बच्चें ने बड़े मज़ेदार ढंग से अपने-अपने अनुभव साझा किए| आज मैं आपके साथ उन बच्चों के कुछ किस्से साझा करने जा रही हूँ , जो मज़ेदार तो है ही पर बातों-बातों में बहुत कुछ सीखा देते है|
छात्र १: मेरे पापा मम्मी कहते हैं, कि जब हम छोटे थे, तब हमेशा पौष्टिक खाना खाते थे और तुम लोग दिन-भर चिप्स, बर्गर, मैगी, पिज़्ज़ा कोल्डड्रिंक और सारा दिन ऐसा ही खाना ही पसंद करते हो |
छात्र अपनी भावना भी बताता है कि जब आप छोटे थे तब ये सारी चीजे मिलती ही नहीं थी तो आप लोग कैसे खाओगे अगर जो मिलती तो आप भी इनके ही दीवाने होते है|
छात्र २: मेरी मम्मी कहती है, कि जब मैं छोटी थी तब हर सब्जेक्ट्स में फुल मार्क्स लाती थी|
बच्चे के दिल के भाव: पर नानी तो कहती है कि तेरी मम्मी पढ़ने में बिल्कुल अच्छी नहीं थी| एक बात मुझे समझ नहीं आई कि जब खुद पढाई में अच्छी नही थी तो कोई बात नहीं, पर हमसे झूठ क्यों बोलती है?
छात्रा ३: मेरे पापा कहते थे कि तुम सारा दिन टीवी और मोबाइल में घुसी रहती हो, कभी पढ़ भी लिया करो, मैं जब तुम्हारे जितना था तब सिर्फ़ पढाई करता था |
छात्रा के भाव पर आपके ज़माने में टीवी और मोबाइल होते थे क्या?
छात्र ४: मेरे पापा कहते है कि हमारी स्कूल इतनी दूर होती थी इसलिए हम १०-१० किलोमीटर साईकिल चलाकर स्कूल जाते थे और एक तुम हो कि २ किलोमीटर जाना है तो भी बस लगवानी पड़ती है, मैं तेरी जगह होता तो भागकर ही स्कूल चला जाता|
छात्र पर आप मुझे जाने ही कहाँ देते हो? साईकिल चलाकर भी नहीं………
छात्रा ५: हमारी पढाई पूरी हो चुकी होती है, होमवर्क भी कर लिया होता है और उसके बाद हम जब घर पर बोर होते है, तब हम टीवी देखते है तो हमारे पेरेंट्स कहते है, क्या दिनभर टीवी देखती है, कुछ देर जरा नीचे भी खेलने चली जाया कर| जब मैं नीचे खेलने जाती हूँ और आने में जरा सी देर हो जाये तो……. आने पर जो स्वागत होता है कि पूछो ही मत ‘ इतनी देर से क्यों आई ? पढ़ने-लिखने का तो कुछ ख्याल ही नहीं है अगर तेरे पास कुछ टाइम था तो काम में मेरी मदद ही कर लेती पर नहीं तुझे तो बस खेलना-खेलना और बस खेलना, जिम्मेदारी का तो कुछ एहसास ही नहीं है|
छात्रा की भावना: अब आप ही बताए कि हम खेलने नहीं जाएँ तो वे खुद जाने को बोलते है और जाएँ तो इतना डाँटते है| ये लोग हमें कुछ समझते ही नहीं|
छात्रा ६: मेरे पैरेंट्स कहते हैं कि हम जब स्कूल जाते थे तब बीच में नदी आती थी, पहाड़ आते थे, हमें वो सब पार कर के जाना होता था | अब तुम्हारे लिए कितनी सुविधाएँ हो गई है और इन सुविधाओं से तुम लोग कितने कमजोर होते जा रहे हो ?
छात्रा के दिल के भाव: एक बार हमारे बैग जितना वजनदार बैग उठा के देखो कौन कमजोर है पता चल जाएगा|
छात्र ७: मेरे पापा बोलते है कि जब हम छोटे थे तब पेड़ पर चढ़ते थे और आम, इमली, अमरूद आदि तोड़-तोड़ कर खाते थे|
छात्र वो लोग हमें तो बताते है और जब हम उन्हें कहते हैं कि हम भी पेड़ पर चढ़े? तो मना कर देते है| हमें चढने ही नहीं देते………. एक तरफ वो हमें ताना मारते हैं और हमें वो सब करने से रोकते भी है |
छात्र ८: मेरी मम्मी कहती है कि मैं बहुत होशियार हूँ, मुझे कोई चीज एक बार बता दे तो मैं कभी नहीं भूलती|
छात्र पर जब घर में नया मोबाइल आता है तो मैं ही सेट करके अपनी मम्मी को देता हूँ, हर बार उन्हें समझाता हूँ, अगली बार फिर भूल जाते है|
छात्रा ९: मेरी मम्मी बताती है कि जब वो छोटी थी वो और उनके सभी भाई-बहन देर रात तक मस्तियाँ किया करते थे और दिन-भर खेलते रहते और मम्मी को परेशान करना तो आम बात थी| उसके बदले मार भी बहुत पड़ती थी और तुम्हें कुछ कह दो तो आँसू बहाने लगती हो, कहने का तो कोई काम ही नहीं रहा आजकल के बच्चों को |
छात्रा के दिल की बात: आप जो-जो काम अपने बचपन में करती थी, उसमे से यदि मैं एक भी कर दूँ ना तो…….. आप पूरा घर सर पर उठा देती हो…. पिटती नहीं, पर इतने ताने मारती हो कि वो ताने सुन-सुन कान पक जाते है| कुछ करने देना नहीं …….ऊपर से ताने भी सुनना तो रोऊँ नहीं तो और क्या ही कर सकती हूँ |
छात्र १०: मेरे पापा कहते हैं कि मैं कक्षा में हमेशा फर्स्ट आता था वो भी बिना ट्यूशन के ….. और एक तुम हो की बस ….
छात्र के भाव: यदि आप कक्षा में फर्स्ट आते थे तो जब भी मुझे कुछ समझ नहीं आता और आपसे पूछने आता हूँ आप मुझे समझाने की बजाए अपनी तारीफ़ करने लग जाते है और मुझे ट्यूशन लगवा देते हो,चाहे मुझे जाना हो या नही|
छात्र ११: हमारे माता-पिता हमेशा अपनी बड़ाई करते रहते है हम ऐसा करते थे, वैसा करते थे आदि |
लेकिन जब हम नानी के घर जाते है तब वही लोग, हमारे माता-पिता, मौसी और मामा जी के साथ मिलकर एकदूसरे की पोल खोल देते हैं और हमें वो सब सुनने में बड़ा मजा आता है|
छात्रा १२: मेरी मम्मी का कहना है कि वो जब तुम्हारी उम्र की थी तब १०-१० घंटे पढाई करती थी, मम्मी की मदद करती थी, ४-५ घंटे खेलती थी और स्कूल भी जाती थी|
छात्रा के भाव: पर मुझे ये समझ नहीं आता कि वो इतने घंटे पढ़ती, खेलती, स्कूल जाती, घर में काम करवाती तो इन सभी में २४ घंटे यूँ ही पूरे हो जाते होंगे पर तब वो… सोती कब थी ?
छात्र १३ : मेरे पापा कहते है कि हम जब छोटे थे हमारे पेरेंट्स हमें खिलौने ही नहीं दिलवाते थे हम खुद खिलौने बनाकर खेलते थे जैसे पकड़म-पकड़ाई, गुल्ली-डंडा, पिट्ठू, सितोलिया, छिछली, डिब्बा आइस-पाइस, कब्बडी आदि|
छात्र के भाव: हमारे पेरेंट्स ने कभी हमें ये सारे गेम कैसे खेलते है बताए भी नहीं और कभी पेड़ से लकड़ी तोड़ने भी नहीं दी…. कुल्हाड़ी जैसे औजार तो हमने सिर्फ़ गूगल पर पिक्स ही देखे है|
इन लोगों ने खुद ही हमें क्रिकेट और टेनिस जैसे महँगे-महँगे कोचिंग सेंटर में डाल रखा है, फिर हम दूसरे गेम कैसे खेलना सीख सकते है ? वो हमारे पेरेंट्स ही जाने या बताएँ, सिर्फ़ बोलने से कुछ नहीं हो सकता |
छात्र १४: मेरे पापा का कहना है कि हमारे घर में एक ही साईकिल हुआ करती थी और उसी साईकिल को हम ताऊ, काका के ८-१० बच्चें, चलाते थे, तुम्हारे लिए इतने खिलौने और अब तक ३ साईकिल आ चुकी है,तुम लोगो के लिए पर्सनल मोबाईल, पर्सनल लेपटॉप, पर्सनल रूम भी | तुम्हे चीजों की और पैसों की कोई कद्र ही नहीं है |
छात्र के दिल की भावना: आप लोनों ने खुद ही हमें ये सब चीज़े ला-ला कर दी है, वो भी हमारे माँगने से पहले ही एडवांस में….. इन लोगों ने हमारी पसंद ना पसंद के बारे में कभी नहीं सोचा कि हम क्या करना चाहते है | पहले महँगी-महँगी चीज़े दिलवाते है उसे यूज़ करे तो ताने, न करे तो ताने कि तुम्हे पैसों की कोई कद्र नहीं अब ये ही हमें बताएँ कि हम करें तो क्या करे?
छात्रा १५: ये बात बहुत से छात्रों द्वारा बोली गई कि हम जब भी कभी बुक्स से दूर दिखाई देते या कभी-कभी हमारे मार्क्स कम आते तो हमारे पेरेंट्स का यही कहना होता है कि पढ़ले-पढ़ले नहीं तो काम वाली बाई बनेगी, कचरा उठाने का काम करना घर-घर जा कर, वाचमैन बन जाना लोगो के घर के सामने बैठ कर सिक्यूरिटी करना उनकी, इत्यादि |
छात्रों की भावना: अरे! आप जब छोटे थे आपने जीवन जीने का असली मज़ा लिया तो हमें भी कुछ वक्त दो जीने के लिए| हम सुबह से स्कूल, स्कूल से ट्यूशन, ट्यूशन से स्पोर्ट्स कोचिंग और छुट्टी वाले दिन आर्ट क्लास, म्यूजिक क्लास आदि आप लोगों के पास हमारे लिए टाइम ही नहीं है और आप हमें भी बिल्कुल फ्री नहीं रहने देते| प्लीज् हमें भी हमारे अनुसार कुछ समय बिताने दो |
बच्चों की इन बातों को सुनकर मुझे यह एहसास हुआ कि माता-पिता अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें सब कुछ सबसे अच्छा देना चाहते है, ताकि उनके बच्चें हर फिल्ड में आगे बढे, नई-नई स्किल्स सीखे, इसलिए वो उन्हें कोचिंग सेंटर भेजते है, अलग-अलग क्लासेज में डालते हैं जिससे ये लोग वो सब सीखे जिनसे हम अपने बचपन में वंचित रह गए थे| अपने बच्चों को खिलौनों से लेकर लेपटॉप तक हर चीज मुहैया कराते है ताकि वो दूसरे का मुँह न ताके और इनकी कमी के कारण ये कहीं पीछे न रह जाये |
लेकिन सबसे जरुरी चीज़ जो बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है, वो किसी ना किसी कारण से उन्हें दे नहीं पाते हैं वो है हमारा कीमती समय |
बच्चों के लिए भौतिक सुविधाएँ जुटाने के लिए हम इतने व्यस्त हो जाते है कि हमारे पास अपने ही बच्चों के लिए समय नहीं होता है यहाँ तक कि हमारे अपने माता-पिता जो गाँव में रहते है वो भी हमारे पास आकर रहने को तैयार नहीं, उन्हें शहरों की भाग-दौड़ वाली जिन्दगी पसंद नहीं आती|
इन सब का खामियाजा हमारी वर्तमान पीढ़ी को चुकाना पड़ रहा है| यह पीढ़ी बहुत कुछ पाने से वंचित रह रही है| यहाँ तक आजकल के बच्चे अपने रिश्तेदरों को व्हाट्सअप और इन्स्टाग्राम पर ही जानते है |
इन लोगों ने जो कुछ देखा और पाया वो सिर्फ़ महँगी चीज़े है| जो कि हमने ही इन्हें दी है, हमनें इन्हें संस्कारों के बदले वस्तुएँ दी, प्रकृति के साथ खेलने की बजाए कोचिंग क्लासेज दी, साफ़ और प्राकृतिक पानी, हवा की बजाए केमिकल वाला पानी और हवा दी और प्यार के साथ-साथ जाने अनजाने में वो ताने दिए जो किसी भी बच्चे के विकास को रोकने के लिए काफ़ी है |
इन बच्चों को हमारे प्यार की, समय की, हमारे संस्कारों की और हमारे साथ की जरूरत है| कुछ सामान और खिलौने कम भी हुए तो चलेंगे| उनके बिना जिया जा सकता है पर प्यार के बिना नहीं |
मेरी आप सभी से विनती है कि यदि आप अपने बच्चों के भले के लिए ही सही, कोई ताना मारते हो जिनके हक़दार ये बच्चें नहीं है, कृपया ऐसा न करें| आप उन्हें प्रकृति के साथ बढ़ना सिखाये, खिलौने खुद बनाना सिखाये, खरीद कर न दें, जिससे वे नए कौशल खुद ब खुद सीख जायेंगे| समय और पैसा दोनों बच जाएँगे| आपने जैसा बचपन जिया है, अपने बच्चों को भी वैसा अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरित करें, अपने बच्चों के प्रेरणास्रोत आप खुद बनें दूसरों के उदाहरण देना बंद करें, अपने बच्चों को दूसरों से तुलना तो कभी ना करें|
सभी बच्चों से भी मेरी गुजारिश है कि जितना जरुरी हो उतना ही मोबाइल और लेपटॉप चलाये, माता-पिता की काम करने में मदद करें जिससे आप भी कुछ नया सीख पायेंगें और अपने-अपने माता-पिता का समय भी बचा पाएंगे जिससे वो आपके साथ खेल सके| माता-पिता द्वारा एक बार सिखाई बात को हमेशा के लिए याद कर ले, वो बातें और संस्कार आपके जीवन भर तो काम आएँगे ही साथ वो लोग आपको ताने भी ना सुनाएँगे, क्योंकि जब वो लोग आपको कुछ कहते हैं और आप सुना अनसुना कर देते है तब मजबूरी में वो आपको सारी बातें सुना देते है जो आपको बिल्कुल पसंद नहीं है| सभी माता-पिता अपने बच्चों को जो कुछ भी कहतें है वो उनकी भलाई के लिए कहते हैं, इसलिए आप उन्हें सकारात्मक रूप से अपने जीवन में उतारें|
आज के परिवेश में माता-पिता और बच्चों दोनों को बदलने की जरुरत है| कहीं ऐसा न हो जाये कि इस भाग-दौड़ भरे जीवन में हमारे बच्चें संस्कारों और प्यार से वंचित रह जाएँ, जिस पर उनका पूरा अधिकार है| आज अगर हम उन्हें संस्कार देंगे तभी वो अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को सींच पाएँगे|
बच्चों के साथ बातें करके मैंने बहुत आनंद लिया और मैंने ये भी समझा कि हर पीढ़ी की अपनी एक अलग सोच होती है| हमें दोनों पीढ़ियों की सोच में सामंजस्य और ताल-मेल बैठाकर और उनकी भावनाओं को समझते हुए सही आचरण करना चाहिए|
– किरण यादव
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