सलाहकार
एक बार एक राजा था| बहुत ही परोपकारी, दानी, न्यायप्रिय और पराक्रमी राजा| उनके इन गुणों के कारण उनका राज्य दिन दुगुना और रात चौगुना फल-फूल रहा था| जिससे उनकी और उनके राज्य की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी|
राजा के २ राजकुमार थे| दोनों राजकुमार एक समान दिखते थे, दोनों शरीरिक रूप से भी बलशाली, गौरे-चिट्टे, हष्ट-पुष्ट, चौड़ी भुजाएँ, लंबा चौड़ा कद, सारे काम भी एक जैसे करते, युद्ध कला में एक से बढ़कर एक| एक समान दानी, अपनी प्रजा की देखभाल करने भी एक जैसे, राजनैतिक और कूटनैतिक गुण तो जैसे दोनों में कूट-कूट कर भरे हो|
दोनों राजकुमारों के कारण राजा बहुत गौरवान्वित महसूस करते, लेकिन एक बात उन्हें मन ही मन खाये जाती थी कि दोनों राजकुमारों में इतने सारे गुण है, कोई किसी से कम नहीं| ऐसी परिस्थिति में अगला राजा किसे घोषत करें ?
इतने बड़े राज्य के नए राजा की घोषणा करने से पहले राजा अपने दोनों बेटों को अच्छे से परखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दोनों की भिन्न-भिन्न प्रकार से परीक्षा लेने का निश्चय किया| कभी वो उन्हें प्रजा के बीच भेजते ताकि वो लोगों की तकलीफ़ समझ सके| दोनों ही आवश्यकतानुसार प्रजा की मदद करते थे|
कठिन से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भेजा, ताकि राजा ये जान सके कि उनके राजकुमार विकट परिस्थिति में कैसा व्यवहार करते है? लेकिन हर परीक्षा के बाद राजा के लिए कठिनाई और भी बढती जा रही थी, क्योंकि दोनों राजकुमार किसी भी काम में एक दूसरे से कम नहीं थे|
ऐसे अलग-अलग परीक्षाओ का सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा, पर राजा किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहे थे| अब राजा ने दोनों राजकुमारों को आस-पास के राज्यों को जीतने के लिए भेजने का निश्चय किया| उन्हें बुलाकर बोला गया कि आपके साथ सिर्फ़ राज्य की सेना ही आएगी कोई भी सेनापति नहीं होगा, आपको अपनी रणनीति स्वयं बनानी है और अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना है |
दोनों राजकुमार अलग-अलग दिशाओं में अपनी-अपनी सेना लेकर चले गए| आस-पास के सभी छोटे-छोटे राज्यों को जीतते गए| छ: महीनों में अपने राज्य की सीमाओं को बहुत दूर तक ले गए | लेकिन राजा के सामने समस्या तस की जस बनी रही|
आखिरकार राजा ने दोनों राजकुमारों को आधा-आधा राज्य सम्भालने के लिए दे दिया| अब दोनों राजकुमारों के अपने-अपने राज्य थे, दोनों अब राजा बन चुके थे| दोनों राजाओं ने अपने मंत्रीमंडल, सेना आदि बनाए, दोनों ने अपने लिए एक विशेष सलाहकार भी नियुक्त किए|
एक राजा का राज्य तो दिन-दुगनी और रात चौगुनी वृद्धि करने लगा| प्रजा बहुत खुश थी कि उनका राजा अक्सर उनकी समस्यओं को सिर्फ़ सुनते ही नहीं उन्हें जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास भी करते थे| पूरा राज्य खुश-खुशहाल, धन दौलत से संपन्न होता जा रहा था| राजा राज्य से संबंधित सभी कार्य अपने सलाहकार से पूछकर करते थे | उनका सलाहकार बहुत ही समझदार, कुशाग्र बुद्धिवाला और बड़े दिल वाला था जो हमेशा अपने राजा और अपनी प्रजा की भलाई के बारे में ही सोचता था | उसकी सलाह राजा के लिए भी वरदान की तरह साबित होती| राजा की प्रसिद्धी दूर-दूर के राज्यों तक फ़ैलने लगी|
वहीं दूसरे राजा ने भी वह सब कुछ किया जो पहले वाले ने किया था पर उनका राज्य पतन की ओर जा रहा था क्योंकि उनका सलाहकार जिस प्रकार की सलाह देता था उससे राजा के आस-पास का वातावरण में एकदम नकारात्मक ऊर्जा परिपूर्ण हो जाता| जब भी कोई व्यक्ति राजा के पास न्याय के लिए आता तो राजा का अपने सलाहकार से विचारविमर्श करके ही न्याय करता था पर सलाहकार की सलाह भी अच्छी होनी चाहिए| राजा उसकी सारी बातें बिना सोचे समझें आँख बंद करके मान लेता था, जिसका खामियाजा राज्य की प्रजा को भी भुगतना पड रहा था| धीरे-धीरे राज्य में बगावत के स्वर उठने लग गए और राज्य से कुछ इलाके पृथक हो गए| एकदिन राजा का पतन हो गया| यह सिर्फ़ गलत सलाहकार के चयन से हुआ| इसलिए सलाहकार होना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है कि वह सही सलाह देने वाला भी होना चाहिए तभी किसी भी राज्य या किसी भी संस्थान का विकास हो सकता है अन्यथा होशियार, कुशाग्र, कूटनैतिक होने के बावजूद पतन निश्चित है|
-किरण यादव
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