
यादें
गुलाबी सी सुबह है,
घर से निकलने की क्या खूब वजह है |
हवाओं में हल्की सी महक है,
पक्षियों के बोलने की चहक है|
कुछ ही दूर चले थे हम,
भूल गए थे सारे गम|
हिला दिया इन ठंडी हवा के थपेड़ों ने,
याद कुछ दिलाया चैरी के इन पेड़ों ने|
हाथों में लिए हाथ कदम से कदम मिलाते,
साथ-साथ प्यार के दीप जलाते|
चलते थे बातें यूँ करते,
प्रेम के गीत गुनगुनाते|
यादों में डूब गया था ये दिल,
एक बार फिर उनसे मिल|
प्यार का राग छेड़ा, महकी सी हवा ने छूकर,
जीवन में नए तराने बाँधे एक बार फिर आकर|
गुलाबी सी सुबह है,
घर से निकलने की क्या खूब वजह है |
-किरण यादव
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