कक्षा ६ सूरदास और रसखान के पद

सूरदास का जीवन परिचय 

•सूरदास का जन्म 1478 ई० में रुनकता क्षेत्र में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म दिल्ली के पास सीही नामक स्थान पर एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1584 ईस्वी में हुई।

•सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं:

•(1) सूरसागर – जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।

•(2) सूरसारावली

•(3) साहित्य-लहरी 

•(4) नल-दमयन्ती

•(5) ब्याहलो

पद

•जसोदा हरि पालने झुलावै |

हलरावै, दुलराइ, मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै ||

मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै |

तू काहे नहिं बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै ||

कबहूँ पलक हरि मूँदी लेत हैं, कबहूँ अधर फरकावै |

सोहत जानि मौन है के रहि, करि-करि सैन बतावै ||

इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरे गावै |

जो सुख ‘सूर’ अमर मुनि दुरलभ, जो नंद भामिनी पावै ||

शब्दार्थ-

१.हरि = भगवान कृष्ण

२.पालना = झुला

३.निंदरिया = नींद

४.सुवावै = सुलाना

५.बेगहिं = जल्दी

६.कबहूँ = कभी

७.मूँदी = बंद करना

८.अधर = होंठ

९.सोवत जानि = सोया हुआ जानकर

१०.सैन= इशारा

११.इहिं अंतर = इतने से अंतर (देर) में

१२.अकुलाना = बैचेन हो जाना 

१३.सूर = देवता

१४.दुरलभ = मुश्किल 

•अर्थ:- इस पद में सूरदास जी ने भगवान् बालकृष्ण की शयनावस्था का सुंदर चित्रण किया हैं | वह कहते हैं कि मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुला रही है | कभी तो वह पालने को हल्कासा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी चूमने लगती हैं | ऐसा करते हुए वह कुछ-कुछ गाती हैं और गुनगुनाती हैं | लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती हैं इसीलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं, उसे ताना मारती हैं कि ओ निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं ? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती ? देख, तुझे कान्हा बुला रहा हैं | जब यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं तब श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं और कभी होठों को फडकाते हैं | जब कन्हैया ने नयन मूंदे तब यशोदा ने समझा कि अब तो कान्हा सो ही गया हैं | तभी कुछ गोपियां वहाँ आई | गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं | इसी अंतराल में श्रीकृष्ण पुन: बैचैन हो कर जाग गए | तब उन्हें सुलाने के उद्देश से पुन: मधुर लोरियां गाने लगीं | अंत में सूरदास नंद पत्नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते है कि सचमुच ही यशोदा बडभागिनी हैं क्योंकि ऐसा सुख तो देवताओं व ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ है,वह सुख नंद भामिनी ( यशोदा मैया ) को मिला|

रसखान का जीवन परिचय –

•रसखान का जन्म दिल्ली के पठान परिवार में हुआ |

•उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था पर ये रसखान के नाम से प्रसिद्ध हुए|

•गोकुल में आकर वे कृष्ण भक्त बनगए|

•इन्होंने विठ्ठलनाथ से शिक्षा प्राप्त की|

•रसखान ने भक्ति और श्रृंगार रूप की रचनाए की|

•रसखान को ‘रस की खान’ भी कहा जाता है

•इनकी मुख्य रचनाएँ प्रेमवाटिका, सुजान, रसखान और दानलीला हैं| 


पद

•धूरि भरे अति सोहत श्याम जू,

तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।

  खेलत-खात फिरैं अँगना,

पग पैंजनि बाजति,कटि पीरी कछौटी।।

  वा छवि को ‘रसखान’ विलोकत,

वारत काम कलानिधि कोटी|

  काग के भाग कहा कहिए,

हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।

शब्दार्थ-

१.धुरि= धुल /मिट्टी

२.अति= ज्यादा

३.सोहत= सुन्दर लगना

४.स्याम= कृष्ण

५.पग= पैर

६.पैंजनी= पायल

७.पीरी= पीली

८.कछोटी= छोटी धोती

९.छवि= image/सुंदर रूप

१०.बिलोकत= देखना

११.वारत= न्योछावर/Sacrifice भेंट

१२.काम=इच्छा / कामना

१३.कला= कौशल /skill, art चंद्रमा की कलाएं

१४.निधि= खजाना

१५.काग= कौआ

१६.भाग= भाग्य

१७.कोटी=करोड़ो

•अर्थ:- इस पद में कवि रसखान कृष्ण के बालरूप का वर्णन कर रहे हैं, बचपन में जब कृष्ण खेल रहे है तब धुल से भरे कृष्ण बहुत सुंदर दिखाई दे रहे हैं और उनके सिर पर बनी चोटी से उनकी सुंदरता और बढ़ गई है|

 जब वह खेलते-खाते हुए आँगन में भाग रहे है तब उनके पैरों की पायल बज रही है और साथ में उन्होंने पीली रंग की धोती भी पहनी है|

रसखान कृष्ण के इस रूप के लिए कहते है कि कृष्ण के इस मनमोहन रूप को देखने के लिए चन्द्रमा अपनी कलाओ को और सभी भगवान अपने करोड़ो ख़जाने न्योछावर कर देते है पर कौआ का भाग्य कितना अच्छा है कि वह हरि के हाथ से मक्खन रोटी ले गया |


 

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